Add To collaction

रक्षक (भाग : 16)

रक्षक भाग : 16


दोनो सेनाओं के आमने सामने आते ही युद्ध आरम्भ हो गया। आज उजाले के खेमे में सैनिको की तादात बढ़ी हुई थी तो वही अंधेरे के खेमे में उत्साह की वर्षा हो रही थी।

कभी न हारने का दम्भ जब मन में हो तो भला सामने कौन टिकता है, पर आज तैयारियां अधिक थी, आज से एक निर्णायक युद्ध होना था - 'एक सतत युद्ध' जो यह निश्चित करेगा  कि कौन जीतेगा और कौन मरेगा, वैसे भी अभी अंधेरा ही सबसे शक्तिशाली प्रतीत हो रहा था।

"कल के जख्म बड़े जल्दी भर गए बच्चे! तुम्हे क्या इस युद्ध का भविष्य नज़र नही आ रहा? निर्णय तो मेरी ओर ही होगा और जीत भी मेरी ही तय है" - तमसा चिढ़ाने के अंदाज़ में रक्षक से बोली।

"मेरे पास तुमसे बेकार की बातें करने का वक़्त नही अंधेरे की बेटी! अब जो निर्णय होगा युद्ध से होगा, हार जीत हम नही युद्ध तय करेगा।" - रक्षक बोला और कहते हुए पंचभूत के सामने जा पहुँचा।

पंचभूत ने अपनी  दोनों पूँछो को चक्रवात की भांति तेज़ गति से घुमाते हुए रक्षक की ओर घुमाया, अपनी तलवार लेकर रक्षक इस तरह से घुमा जिससे वो दोनों पूँछो के संपर्क में आये बिना बीच से गुजर सके, घूमता हुआ रक्षक पूँछो द्वारा उत्पन्न किये गए चक्रवात में घुस गया, और तलवार को इस प्रकार पकड़ा जिससे पूंछ पर प्रहार हो परन्तु पूरी पूंछ न कटे, क्योंकि पूरी कटते ही रक्षक को नई मुसीबत का भी सामना करना पड़ता, पूंछ आधी तक कट गयी थी पर अलग नही हो पा रही थी, दर्द होने के कारण पंचभूत ने पूंछ से उत्पन्न चक्रवात बन्द कर दिया, पर रक्षक अब कुछ कुछ यूनिक की बातें समझने लगा  था और गुरु जीवा के अनुसार भी यूनिक को अंधेरे की दुनिया का काफी कुछ पता था हो सकता है वो सर्पितृलों के बारे में भी जानता हो, पर अभी बिगड़ी भाषा शैली के कारण बता नही पा रहा हो, या वो भी नही जानता केवल अपने अनुगणनाओ के आधार पर बता रहा हो, अब या तो उसकी भाषा ठीक हो जाये या उसे सब कुछ पता हो, पर अभी उससे पूछने का भी समय नही था।

रक्षक अभी विचार ही कर रहा था कि पंचभूत का एक हाथ उसकी गर्दन पर कस गया, दूसरे हाथ से उसने रक्षक का मास्क ( चेहरे पर लगा ठोस नकाब) पकड़कर उतारना चाहा पर वह यह न कर सका, रक्षक अब फिर से क्रोधित होने लगा, उसने अपने गले पर पकड़े हुए पंचभूत के हाथ को मरोड़ दिया, परन्तु आश्चर्य हाथ मे हड्डियों जैसा कुछ होने का एहसास भी नही हुआ, रक्षक समझ नही पा रहा था यह प्राणी किस मिट्टी का बना हुआ है, पर मरोड़ने के कारण रक्षक की गर्दन, पंचभूत के हाथों से छूट गयी थी।

"हार मान ले उजाले के प्राणी, आसान मौत मरेगा, वरना ऐसी मौत मारूँगा की उजाले की सात पुश्ते भी पंचभूत के नाम से कांप जाएंगी" - पंचभूत खड़ा होकर दहाड़ते हुए बोला।

"ये युद्ध है पंचभूत और मैं एक योद्धा, और योद्धा का कार्य लड़ना होता है, हार जीत का फैसला वक़्त आने पर हो जाएगा।" - रक्षक ने पंचभूत को जवाब दिया।

"तुम चंद उजाले के प्राणी! तुम्हे लगता है की तुम मुझे और मेरी सेना को रोक सकते हो, जिसे आज तक कोई नही हरा पाया!" - पंचभूत अपने दूसरे हाथ से एक नुकीला हथियार जो तलवार और कुल्हाड़ी है मिश्रण जैसा लगता है, से रक्षक की पर वार करते हुए बोला।

"एक अकेला दिया ही अंधेरे को दूर कर सकता है पंचभूत, तुमने तो सूरज को ललकार दिया है।" - रक्षक उस हथियार को रोकते हुए बोला।

"तुम ऐसे नही मानोगे तुच्छ प्राणी!" पंचभूत जोर से बोलता हुआ रक्षक की तरफ बढ़ा।

"शक्ति का होना अच्छी बात है पंचभूत अहंकार का बिल्कुल भी नही, माना कि तुम आज तक नही हारे पर तुमने सदियों तक सिर्फ विश्राम किया है, युद्ध नही।" - रक्षक उसे छकाते हुए बोला।

"तो तुम नमूनों को पंचभूत की ताकत देखनी है।" पंचभूत के एक हाथ में भारी भरकम गदा आ गयी, जिसे उसने रक्षक के सिर की ओर फेंक दिया, जिससे रक्षक झुककर बच गया पर दो चार सर्पितृल कुचले गए।

"भाई मेरा गुस्सा उनपर क्यों निकाल रहा!"  रक्षक ने उसे चिढ़ाया।

अब रक्षक अपने हाथों से बी किरण उत्पन्न कर पंचभूत पर हमला करने लगा, जिससे पंचभूत एक सुरक्षा दीवार बनाकर बच गया, पंचभूत ने भी जहरीला उर्जावार किया जिससे रक्षक बड़ी मुश्किल से बच पाया।

उधर बाकी सब भी अपनी पूरी जान लगाकर लड़ रहे थे, इन्होंने अब भी टीम बनाई हुई थी, पर आज हर एक बड़ी टुकड़ी का नेतृत्व कर रहा था, अंश नीले सूर्य के किरणों में होने के कारण बहुत ताक़तवर हो चुका था, वह बिजलियों का कैदखाना बनाकर सर्पितृलों को कैद कर रहा था, बाकी के सैनिक अपनी पूरी जान लगाकर लड़ रहे थे, बिजलियों की जेल भी उन्हें ज्यादा देर तक नही रोक सकती थी क्योंकि थोड़ी देर में वे इसकी काट अवश्य बना लेते इसलिए जब तक कोई स्थायी हल न मिल जाये तब तक के लिए यह करना आवश्यक था।

पर जैसी उम्मीद अंश को थी, वो उम्मीद, उम्मीद से पहले ही टूट गयी। थोड़े ही देर में वे बिजलियों के कैद से आराम से बाहर निकलने लगे, अंश के दोनों महान अस्त्र बेकार हो चुके थे, शारिरिक बल से उन्हें रोक पाना असंभव ही था।

"अब क्या करूँ मैं!" अंश अपने से ही बुदबुदाया और सेना का नेतृत्व करते हुए सर्पितृलों के बीच चला गया।

अर्थ आज एक विशेष कवच में था, जो सैनिको के कवच से ज्यादा शक्तिशाली और मजबूत था, परन्तु आज भी लड़ाई शारिरिक बल से ही करनी थी  जो कि फिलहाल अत्यंत दुष्कर प्रतीत हो रहा था।

"अब शुरुआत तो हो ही गयी है दोस्तो, कम ताक़त या संख्या यह तय नही करती कि हम कमज़ोर हैं, यह वक़्त है खुद को साबित करने का, उजाले पर डालने माटी पर अपने अपनो के लिए कुर्बान होने का, कुछ कर दिखाने का.. अगर तुम यहाँ आये हो तो यह तय है कि तुम्हे मौत से डर नही लगता, चलो आज दिखा देते हैं कि उजाले के दिये, अंधेरे के कुएं से कमज़ोर नही हैं, वो उजाला ही करेंगे। एक युद्ध अपने अपनो के लिए…" - जोर जोर से चिल्लाता हुआ अर्थ अपने सैनिकों में जोश भरता हुआ सर्पितृलों के बड़े समूह से जा टकराया।

जयंत और स्कन्ध ने अपनी सेनाओ को एक मे कर लिया और एक योग्य सेनापति का चुनाव कर उसके हाथ मे अपनी विशेष बंदूक और चैन देकर पूरी ताकत के साथ सर्पितृलों के बीच घुस गए, सर्पितृलों से सीधे लड़ने का मतलब हार को बुलावा देना ही था, पर फिलहाल इसके अलावा कोई चारा नही था, एक सर्पितृल जयंत पर अपने हथियार जो गदा और कुल्हाड़ी का मिश्रण था, से वार किया, जिसे जयंत अपने हाथ से रोककर उसकी पूंछ पर फेंक दिया, गदे के तरफ से गिरने के कारण पूंछ कटी नही पर वह बौखला जरूर गया, जिससे जयंत और स्कन्ध ने उन्हें ऐसे प्रहार करने आरम्भ कर दिए जिससे चोट लगे दर्द भी हो पर कोई भाग शरीर से अलग न हो और यही निर्देश अपने साथी सैनिको को भी दिया।

यूनिक सबसे अलग विचित्र भाषा मे बड़बड़ाता हुआ हज़ारो सर्पितृलों से भीड़ गया पर वह भी कोई घातक वार नही कर  रहा था, ऐसा कोई भी वार नही जिसमे सर्पितृलों का अंग भंग हो जाये, वह अपने शरीर से लाइव मेटल को जमीन पर बिखेरने लगा, जो वहां आस पास मौजूद सर्पितृलों को अपने कैद में ले रही थी, सर्पितृल अपने घातक हथियारों से यूनिक पर हमला भी कर रहे थे पर चुम्बकीय क्षेत्र बदलते रहने के कारण उनके हथियार किसी दूसरे सर्पितृल को ही जा लगते थे, यूनिक किसी छोटे बच्चे की तरह मस्ती करते हुए अपने हाथों में घनो को लेकर उनका आकार बड़ा कर उसमें सर्पितृलों को कैद करने लगा।

जीवन को नेतृत्व करने की कोई इच्छा नही थी। उसने अपनी सेना जय को दे दी, उसे देखकर जॉर्ज ने भी अपनी सेना जैक को दे दी, जीवन वैसे भी हमेशा गुस्से में रहता था आज इन जीवों ने उसे और क्रोधित कर दिया था, वह अपनी नुकीली चैन की गदा और तलवार लेकर बीच मे कूद गया और गदे को एक बार घुमाकर छोड़ने पर ही सैकड़ो सर्पितृल सैनिक जमीन पर लेटे हुए नज़र आये। जीवन ने बड़ी फुर्ती से, बिना किसी अंग को भंग किये कईयों के शरीर में तलवार आर पार कर दिया।

जॉर्ज भी किसी दरिंदे से कम नही लग रहा था वह अपने दोनों हाथों में भाला लेकर सर्पितृलों के शरीर मे आर पार किये जा रहा था, पर इसमें उसे भी बहुत जख्म मिल रहे थे।

जय और जैक पूरी सेना का संचालन कर रहे थे, वे कुशलता से सर्पितृलों योद्धाओं का सामना कर रहे थे परन्तु अब भी किसी के पास कोई स्थायी हल नही था। परन्तु जय उन्हें बुद्धि से हराने की सोच रहा था जैसा गुरु जीवा ने कहा था इन्हें ताक़त से नही हराया जा सकता।

रक्षक और बाकी सब भी सर्पितृलों को रोकने में लगे हुए थे, पर कोई फायदा नही, वे अब तक केवल रोक पा रहे थे पर उन्हें हराने का कोई उपाय नज़र नही आ रहा था। उनकी कोई कमज़ोरी नज़र नही आ रही थी जिससे उन्हें हराया जा सके, जय को भी अब तक कोई आस नही मिली थी।  यूनिक वहां से बहुत दूर युद्ध कर रहा था जिस कारण से अब उससे भी कोई जानकारी हासिल नही कर सकते।

आज युद्ध को लगातार लड़ते हुए दस दिन होने को थे, पर हार जीत का कोई फैसला नही हो सका, अब भी अंधेरे का पलड़ा भारी था। तमसा जोरदार ठहाका लगा रही थी। लगातार युद्ध से उजाले के सैनिक बुरी ग्रह थक चुके थे जबकि सर्पितृलों के पास ऐसे युद्ध का बहुत अनुभव था जिससे उनपर रत्तीभर भी फर्क नही पड़ रहा था।

जय अब समझ चुका था इन्हें ताक़त के दम पर अब रोक पाना भी नामुमकिन है, वह यूनिक के शब्दों पर बहुत ज्यादा विचार करने लगा, अचानक उसका मस्तिष्क कौंधा, जैसे उसे अब सर्पितृलों से निपटने का उपाय मिल गया हो, उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गयी।

रक्षक पंचभूत के साथ सैकड़ो सर्पितृलों को रोकते रोकते बहुत थक गया था। उसके कदम लड़खड़ाने लगे थे। ऐसा ही हाल बाकी सारे उजाले के प्रतिनिधियों और सैनिको का था, पंचभूत आगे बढ़ा, अपने हाथों से उसके सीने पर चढ़ा कवच फाड़ डाला और अपनी पूंछ को उसके सीने में घुसाकर, संसार का सबसे तेज़ जहर रक्षक के अंदर पहुँचा डाला, रक्षक की पलके बन्द होने लगी, हाथ मे थमी तलवार छूटने लगी, पंचभूत और तमसा जोर जोर ठहाके लगा कर  हँस रहे थे।

क्रमशः…..


   7
3 Comments

Hayati ansari

29-Nov-2021 09:57 AM

Good

Reply

Niraj Pandey

08-Oct-2021 04:36 PM

वाह बहुत ही शानदार

Reply

Seema Priyadarshini sahay

05-Oct-2021 12:15 PM

बेहतरीन..💯

Reply